हिन्दी दिवस

हिंदी का प्रचार-प्रसार और उसका सर्वस्वीकृतिकरण क्या केवल एक भावनात्मक मुद्दा रह गया है?
हिंदी के उत्थान की कसमें अंग्रेजी में खाई जाती हैं तो ये काफी हास्यास्पद होने के साथ बहुत ही वेदना उत्पन्न करने वाला सिद्ध होता है। “हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में कैसे प्रतिष्ठित कराया जा सकता है” इस पर अब सभी हिंदी प्रेमियों को गहन चिंतन करना ही होगा।
14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भाषा को अखण्ड भारत की प्रशासनिक भाषा के ओहदे से नवाजा था। यही वजह है कि हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
लेकिन आज देश की यही राज भाषा स्वयं अपने अस्तित्व की तलाश कर रही है। अंग्रेजी के प्रसार-प्रचारने मानों हिंदी से उसका अधिकार छीन लिया है।
कहने को तो लोग हिंदी को अपनी मातृ भाषा कहते हैं लेकिन युवा, जिन्हें हम देश का भविष्य कहकर भारी-भरकम जिम्मेदारी सौंप देते हैं, खुद हिंदी के महत्व को नकारता जा रहा है। उनके लिए हिंदी में बोलना अपने स्टेटस को कम करने जैसा है। यूं तो हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में लगभग सभी स्कूल, कॉलेजों में कोई ना कोई आयोजन किया जाता है, जिनमें भागीदारी निभाने वालों की संख्या नगण्य होती है, पर जब बोलचाल और पढ़ाई की बात आती है तो उनकी प्राथमिकता अंग्रेजी को ही जाती है।
हम चाहे इस बात को कितना ही नजरअंदाज क्यों ना करें लेकिन सच यही है कि हिंदी भाषा के औचित्य पर प्रश्न चिह्न स्वयं हमने ही लगाया है।
आज हमारी पाठशाला गजेरा विद्याभवन सचिन में हिंदी दिवस का उत्सव के भाग रूप हमने कक्षा एक से चार के छात्र के लिए हिंदी विषय में कविता गान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था| एवं कक्षा ५ से ७ के छात्रों के लिए निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। तथा निबंध लेखन प्रतियोगिता का विषय था ।
1. ऑर्गेनिक फूड
2. जल बचाओ जीवन बचाओ
3. पुनर्चक्रण की पर्यावरण में उपयोगिता
4. कचरे का निबंध ।
यह प्रतियोगिता में सभी छात्रों ने हर्ष उल्लास के साथ प्रतियोगिता में भाग लिया था।